मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

चिड़िया का गीत

एक हरे वृक्ष पर पीली चिड़िया आती थी 
चिड़िया एक जंगल से उड़कर आती थी 
नीचे अपनी साँवली परछाई के ऊपर 
अपने पीलेपन को 
आकाश के नीले में गाती थी 

एक पुकार से वृक्ष की मटमैली जड़ 
सिहरकर उसको देखती थी 
अगली बार चिड़िया जड़ के मटमैले को गाती थी 
उसे सुनकर एक पकता हुआ फल सुगंधित हो जाता था 
पकता हुआ फल लाल और रस को पुकारता था 
तुरंत चिड़िया लाल और रस को गाती थी 
गाने में सुगंध जो क्षण भर पहले छूटा 
तत्क्षण सुगंध को भरपाई में 
दो बार गाती थी 
एक बेरंग हवा वहाँ से गुज़रती थी 
वृक्ष बाहर थोड़ा हिलता था 
चिड़िया थोड़ी देर बेरंग, बाहर और हिलने को गाती 
चिड़िया का गाना सब सुनते थे 
अचानक चिड़िया को लगता था 
कि वह ख़ुद का गाना न सुनती थी 
फिर चुप होकर वह ख़ुद को सुनने लगती थी 
फिर बिन बोले अपने सुनने को गाती थी 
वह एक चिड़िया जितने को जितना गाती थी 
उसी एक में उतनी चिड़ियाएँ 
उतनी और उतर आती थीं 
आख़िर में भर कर सब चिड़ियाएँ सब में 
एक साथ चुपचाप सुनने का गीत गाती थीं!

- प्रकाश
---------

हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें