सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

वर्जनाओं के विरुद्ध

तुम्हारी वर्जनाओं के
विरुद्ध
तनी हुई मुट्ठियों में
अभी भी इतनी सामर्थ्य
बची है
कि भर सके
तुम्हारे विरुद्ध
हुंकार
और दर्ज करा सके
अपना प्रतिरोध
यद्यपि तुम्हारी अकड़न को
यह स्वीकार नहीं
बावजूद इसके
भिंची  हुई चबुरियाँ और
तनी हुई मुट्ठियाँ
कर देगी तुम्हारे विरुद्ध
इकबाल बुलंदी का
जयघोष
तुम्हारी क्रूरताएँ भी
रोक नहीं सकती
हक के लिए बढ़ते हुए कदम
अब फैसला तुम्हारे
हाथ में है
कि बचे हुए समय में
जमींदोज़ होती
आस्मिताएँ बचाने का
प्रयत्न करते हो
या फिर घुटकर
दम तोड़ने के लिए
छोड़ देना चाहते हो।

 - प्रद्युम्न कुमार
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बिजूका से साभार 

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