एक यही अरमान गीत बन,
प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ
जड़ जग के उपहार सभी हैं,
धार आँसुओं की बिन वाणी,
शब्द नहीं कह पाते तुमसे
मेरे मन की मर्म कहानी,
उर की आग, राग ही केवल
कंठस्थल में लेकर चलता,
एक यही अरमान गीत बन,
प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ
जान-समझ मैं तुमको लूँगा
यह मेरा अभिमान कभी था,
अब अनुभव यह बतलाता है
मैं कितना नादान कभी था;
योग्य कभी स्वर मेरा होगा,
विवश उसे तुम दुहराओगे?
बहुत यही है अगर तुम्हारे
अधरों से परिचित हो जाऊँ।
एक यही अरमान गीत बन,
प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ
- हरिवंशराय बच्चन
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संपादकीय चयन
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