बराबर
उसके क़द के यों मेरा क़द हो नहीं सकता
वो
तुलसी हो नहीं सकता मैं बरगद हो नहीं सकता
मिटा
दे लाँघ जाए या कि उसका अतिक्रमण कर ले
मैं
ऐसी कोई भी कमज़ोर सरहद हो नहीं सकता
जमा
कर ख़ुद के पाँवों को चुनौती देनी पड़ती है
कोई
बैसाखियों के दम पे अंगद हो नहीं सकता
लिए
हो फूल हाथों में बग़ल में हो छुरी लेकिन
महज़
सम्मान करना उसका मक़सद हो नहीं सकता
उफनकर
वो भले ही तोड़ दे अपने किनारों को
रहे
नाला सदा नाला कभी नद हो नहीं सकता
ख़ुशी
का अर्थ क्या जाने वो मन कि शांति क्या समझे
बिहँसता
देख बच्चों को जो गदगद हो नहीं सकता
है 'भारद्वाज' गहरा
फ़र्क दोनों के मिज़ाजों में
मैं
रूमानी ग़ज़ल वो भक्ति का पद हो नहीं सकता
- चंद्रभानु भारद्वाज
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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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