मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

अभी-अभी एक गीत रचा है

अभी-अभी एक गीत रचा है तुमको जीते-जीते 
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते 

अभी-अभी साँसों में उतरी है साँसों की माया 
अभी-अभी होंठों ने जाना अपना और पराया 
अभी-अभी एहसास हुआ जीवन, जीवन बोता है 
ख़ुद को शून्य बनाना भी कितना विराट होता है 
अभी-अभी भर दिए मधुकलश सारे रीते-रीते 
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते 

अभी-अभी संवाद हुए हैं चाहों में आहों में 
अभी-अभी चाँदनी घुली है अंबर की बाँहों में 
अभी-अभी पीड़ा ने खोजा सुख का रैनबसेरा 
अभी-अभी 'हम' होकर पिघला सब कुछ 'तेरा-मेरा'
अभी-अभी भर गया समंदर नदियाँ पीते-पीते 
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते

- कुमार विश्वास
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

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