अभी-अभी एक गीत रचा है तुमको जीते-जीते
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते
अभी-अभी साँसों में उतरी है साँसों की माया
अभी-अभी होंठों ने जाना अपना और पराया
अभी-अभी एहसास हुआ जीवन, जीवन बोता है
ख़ुद को शून्य बनाना भी कितना विराट होता है
अभी-अभी भर दिए मधुकलश सारे रीते-रीते
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते
अभी-अभी संवाद हुए हैं चाहों में आहों में
अभी-अभी चाँदनी घुली है अंबर की बाँहों में
अभी-अभी पीड़ा ने खोजा सुख का रैनबसेरा
अभी-अभी 'हम' होकर पिघला सब कुछ 'तेरा-मेरा'
अभी-अभी भर गया समंदर नदियाँ पीते-पीते
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते
- कुमार विश्वास
-----------------
हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें