गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

श्रद्धा

प्राकृतिक है,
कृत्रिम नहीं,
पनपती है ज़मीन से
गमले में नहीं,
फूटता है अंकुर उसका
हृदयतल से,
हल्की-सी चोट से
टूटता है पल में,
बेशक, 
गमला कीमती होता है
बिकाऊ भी।

श्रद्धा अमूल्य है,
वह बिकती नहीं,
और इसी से वह
गमले में पनपती नहीं।

- उर्मिला शुक्ल
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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