शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

समय के उलट

मौन से संकेत  

 संकेत से ध्वनि 

ध्वनि से बोली 

बोली से भाषा 

बनने की प्रक्रिया 

पुरानी पड़ चुकी है 

नवीन प्रक्रिया में 

भाषाओं का घड़ा रीत चुका है 

बोली ‘हल्ला बोलने’ 

ध्वनि धमकाने 

और संकेत साँसों पर साँकल चढ़ाने के 

काम लाए जा रहे हैं 

हम समय में उल्टे बह रहे हैं 

यह चुप्पी से भाषा निर्माण का नहीं 

भाषा से चुप्पी साधने का समय है।


-  अंजुम शर्मा

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- संपादकीय चयन 

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

मेरा आँगन, मेरा पेड़

मेरा आँगन
कितना कुशादा कितना बड़ा था
जिसमें
मेरे सारे खेल
समा जाते थे
और आँगन के आगे था वह पेड़
कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था
लेकिन
मुझको इसका यक़ीं था
जब मैं बड़ा हो जाऊँगा
इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा
बरसों बाद
मैं घर लौटा हूँ
देख रहा हूँ
ये आँगन
कितना छोटा है
पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है

-  जावेद अख़्तर
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

शहर

सिर पर 
गेहूँ की बोरी लादकर 
गाँव का आदमी उतरता है शहर में, 

शहर 
गेहूँ की बोरी उसके सिर से उतारता है 
आदमी को पीसता है 
और खा जाता है।

- अंजुम शर्मा
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

जय घोष एक त्रासदी है

बहुत भोले हो तुम
बार-बार धोखा खाकर भी तुम
गढ़ने लगते हो
एक मूर्ति
किसी नायक की
जो खोलेगा
तुम्हारी गिरह गाँठ
सहलाएगा उन ज़ख़्मों को
जो रिस रहें हैं सदियों से
उसके पास होगी
फूलों वाली जादू की छड़ी
हवा में घुमाएगा गोल-गोल
कहेगा हाँ!
मैं ही तो हूँ
मुक्तिदाता
मेरे पीछे आओ
तुमने भी सुनी तो थी बचपन में
उस बाँसुरी वादक की कहानी
जिसके पीछे चल दिए थे
सब के सब चूहे।
बार-बार भूल जाते हो
बहुत भोले हो यार
बचो उन आवाज़ों से
जो बहुत तेज़ होती हैं
जय घोष त्रासदी
हर जीत मानव की छाती पर हुआ घाव है।
कविता अभी ज़िंदा है
संगीत की लहरी
और
फूलों की घाटी का स्वप्न ज़िंदा है अभी।

-  राजेश अरोड़ा
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

अभी-अभी एक गीत रचा है

अभी-अभी एक गीत रचा है तुमको जीते-जीते 
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते 

अभी-अभी साँसों में उतरी है साँसों की माया 
अभी-अभी होंठों ने जाना अपना और पराया 
अभी-अभी एहसास हुआ जीवन, जीवन बोता है 
ख़ुद को शून्य बनाना भी कितना विराट होता है 
अभी-अभी भर दिए मधुकलश सारे रीते-रीते 
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते 

अभी-अभी संवाद हुए हैं चाहों में आहों में 
अभी-अभी चाँदनी घुली है अंबर की बाँहों में 
अभी-अभी पीड़ा ने खोजा सुख का रैनबसेरा 
अभी-अभी 'हम' होकर पिघला सब कुछ 'तेरा-मेरा'
अभी-अभी भर गया समंदर नदियाँ पीते-पीते 
अभी-अभी अमृत छलका है अमृत पीते-पीते

- कुमार विश्वास
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद